रेत होते रिश्ते - भाग 3

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मैं नहा-धोकर जब कमरे में आया तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि शाबान इत्मीनान से बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा है। मेरे आने के बाद भी वह उसी तरह बैठा रहा। न उठा और न कुछ बोला। मैंने झुंझलाकर घड़ी देखते हुए कहा— ‘‘शाबान, साढ़े आठ बजे हैं और आधा घंटे में हम निकलेंगे। तुम तैयार तो हो जाओ। देर हो जायेगी।’’ शाबान ने मेरी ओर देखा तक नहीं। वह बैठा हुआ उसी तरह अखबार पढ़ता रहा। फिर लापरवाही से बोला—‘‘आप जाइये, मैं नहीं जाऊँगा।’’ ‘‘मगर क्यों?’’ मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने कहा—‘‘वहाँ अरमान तुम्हारी राह देख रहा होगा, तुम