रेत होते रिश्ते - भाग 2

  • 1.7k
  • 867

मैं सकपकाया। लेकिन तुरन्त ही संभलते हुए मैंने कहा— ‘‘वह मुझे निश्चित जगह पर मिलेगा सुबह।’’ ‘‘आपको इस समय नहीं पता कि वह कहाँ है?’’ ‘‘बिलकुल नहीं।’’ ‘‘उसका फोन नम्बर भी नहीं है आपके पास?’’ ‘‘मैंने कहा न, नहीं है। सुबह वह खुद हमसे मिलने वहाँ आयेगा और तब हम अपने ही साथ उसे ले आयेंगे।’’ ‘‘लेकिन ऐसा हो कैसे सकता है, सारी शाम आप उसके साथ थे और आपने उससे पूछा तक नहीं कि रात को वह कहाँ रहेगा।’’ ‘‘फिर वही बात!’’ अब मैं थोड़ा झल्लाने लगा था। बोला— ‘‘तुम बच्चों जैसी जिद क्यों पकड़े हुए हो? मुझ पर