8 राम आसरी का समय अब बहुत अच्छी तरह से व्यतीत होने लगा था। सारा दिन घर के कामों में व्यस्त रहती। शाम को मुन्ना के साथ बैठकर बहुत देर तक बतियाती। न खाने की चिंता थी और न पहनने की। रहने के लिए साफ सुथरा मकान था। ऊपर से जो पैसे मिलते थे वो सब बचत के थे। कभी-कभी अकेली बैठकर जब उसे अपने पुराने दिन याद आते तो सिहर उठती। कैसे सुबह जल्दी उठकर और रूखी-सूखी खाकर सारा दिन नदी में रेत और बजरी निकालना, भूखे पेट और बीमारी की हालत में कमर बाँधकर सारा-सारा दिन टोकरी उठाना