36=== आज फिर आशी लिखते-लिखते बाहर बॉलकनी में आ खड़ी हुई थी | सुहास कभी भी आकर उससे ज़िद करने लगती कि जितनी भी लिखी है वह अपनी कहानी उसे पढ़ दे लेकिन वह आशी थी, बता चुकी थी कि पूरी हो जाए तब ही पढ़ना---सुहास का मन मुरझा जाता | आज वह न जाने क्या कहने आई थी लेकिन आशी दीदी का अजीब स मूड देखकर वापिस चली गई | वास्तव में आशी उस दिन बहुत उदास थी | उस दिन की यादें उसका जैसे दम घोंट रही थीं----यह वह दिन था जब उन सब पर एक बार फिर