शून्य से शून्य तक - भाग 35

35==== ‘कभी-कभी किसी छोटी सी बात को कहने में भी कितना सोचना पड़ता है, उसमें भी जब आशी जैसी बेटी हो | ’एक ज़माना वो होता था जिसमें हम अपने पिता से बात करते हुए कतराते थे और एक यह समय है कि आज पिता को बेटी से बात करने में संकोच हो रहा है, घबराहट हो रही है | ’वे मन ही मन उद्विग्न हो रहे थे, कैसे बात करें, उनका मुँह सूखा जा रहा था |  दीनानाथ ने सूखे हुए गले को एक बार मेज़ पर रखे हुए ग्लास का कोस्टर उठाकर उसमें भरे पानी से गला तर