अंजुरी भर नेह - रेणु गुप्ता

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अस्सी के दशक को लुगदी साहित्य का स्वर्णिम युग कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। युवाओं से लेकर अधेड़ों एवं बुज़ुर्गों तक के हाथ में इसी तरह के उपन्यास नज़र आते थे। घरों में पाबंदी होने के बावजूद किसी के तकिए के नीचे ऐसे उपन्यास नज़र आते तो कोई सबकी नज़र बचा इन्हें टॉयलेट अथवा स्टोर रूम इत्यादि में छिप कर पढ़ रहा होता था। बस अड्डों से लेकर रेलवे स्टेशनों तक, हर तरफ़ इन्हीं का बोलबाला था। गली मोहल्लों की छोटी-छोटी दुकानों में इस तरह के उपन्यास किराए पर मिला करते।इन उपन्यासों में जहाँ एक तरफ़ रोमानियत से