मैं तो ओढ चुनरिया 59 एक तो नया शहर , ऊपर से नया घर , नया माहौल , नये लोग और इस तरह का अकेलापन । मन बुरी तरह से घबरा रहा था । कोई तो आए जिसकी आवाज कानों में सुनाई पङे । बैठ कर इंतजार करते करते मैं ऊंघने लगी थी और ये दीदी आने का नाम ही नहीं ले रही थी । सिर झटके खाने ही वाला था कि अचानक ये लपकते हुए आए और दरवाजे का कुंडा बंद । मैंने डरते डरते कहा – यहाँ दीदी अपना बिस्तर बिछा कर गई