साथी - भाग 2

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जब थोड़ा पैसा मिला तो दोनों ने पैसा जमाकर के एक बड़ी सी दरी खरीदी ताकि बिछा भी सकें और औढ़ भी सकें. ताकी रात को दोनों चैन से सौ सके. रोज़ रात को दोनों थक हारकर अपनी दरी और चादर में एक दूसरे से लिपटकर सो जाते. दोनों एक दूसरे का बिल्कुल वैसे ही ख़याल रखते, जैसे एक पुरुष अपनी स्त्री का रखता है और एक पत्नी अपने पति का रखती है. दोनों के काम और स्वभाव से प्रसन्न होकर उस चाय वाले ने उन्हें एक छोटे होटल वाले से मिलवा दिया. जहाँ उन्हें बर्तन माजना और साफ-सफाई का