शून्य से शून्य तक - भाग 23

  • 1.1k
  • 468

23=== एक दिन दीना जी लॉबी में अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे न जाने क्या सोच रहे थे | माधो इधर-उधर किसी काम से गया हुआ था, वहीं कहीं | कुर्सी पर बैठे-बैठे उनकी झपकी लग गई और उनका अर्धचेतन मस्तिष्क न जाने कहाँ पहुँच गया|  “मैंने नहीं कहा था कि----”उन्हें माँ सुमित्रा देवी की आवाज़ सुनाई दी |  “क्या—क्या कहा था तुमने ? ” पिता अमरनाथ का स्वर था |  “यही कि वो मरा क्वींस ---उसकी नज़र ठीक नहीं है -----पर मैं तो गँवार हूँ न, मेरी बात कौन सुनता है? गोरे-चिट्टे लोग ऊपर से ही तो गोरे होते हैं,