शून्य से शून्य तक - भाग 21

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21=== आशी ने कितनी ही बातें अपने माता-पिता के मुँह से सुनीं थीं लेकिन वह उस समय छोटी थी| दादा जी के ज़माने की बातें सुनना उसे अच्छा लगता, कई बातों से वह चकित भी हो जाती | उन दिनों ‘पिक्चर-हॉल’को थियेटर कहा जाता था| आशी के दादा सेठ अमरनाथ के अपने खुद के कई थिएटर्स थे| अँग्रेज़ मित्र अँग्रेज़ी फ़िल्म देखने की फ़रमाइश करते तो किसी भी थियेटर में अँग्रेज़ी फ़िल्म लगवा दी जाती| दो/चार बार तो अमरनाथ जी के साथ उनके ज़ोर देने पर सुमित्रा देवी उनके मित्रों के साथ फ़िल्म देखने चली भी गईं | पर अँग्रेज़ी