शून्य से शून्य तक - भाग 7

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7=== आशी ने लिखते-लिखते एक लंबी साँस भरी| इस समय वह कमरे में बैठी थी लेकिन खिड़की के पास मेज़ व कुर्सी की व्यवस्था होने से खिड़की से अरावली की पहाड़ियाँ धीरे-धीरे धुंध की चपेट में दिखाई देने लगीं थीं| वह उठी, कमरे की बत्ती जलाई और बाहर बरामदे में आ खड़ी हुई| उसे कभी अपना बीता हुआ समय याद आता तो कभी बीते हुए वे क्षण जिनसे वह ही नहीं, न जाने कितने और जुड़े थे|  वास्तव में दीनानाथ का वर्तमान व्यक्तित्व अब यही रह गया था | घुटन और एकाकीपन से भरा! समय-समय की बात होती है| कभी