सेकेण्ड वाइफ़ - भाग 1

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भाग-1 प्रदीप श्रीवास्तव नवंबर का दूसरा सप्ताह बस जाने ही वाला था। मौसम बहुत सुहावना हो रहा था। लेकिन मेरा मन बड़ा अशांत था। थका-थका सा, अपना स्ट्रॉली बैग खींचता हुआ ट्रेन की एक बोगी में चढ़ गया। कई सीटों पर इधर-उधर दृष्टि फेंकता हुआ एक सीट पर बैठ कर खिड़की खोल ली, प्लेटफ़ॉर्म पर बहुत चहल-पहल थी। पिछले कुछ वर्षों में नया रंग-रूप पा जाने से स्टेशन चमक रहा था। सारी व्यवस्था बड़ी चाक-चौबंद लग रही थी। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि यह अस्त व्यस्त, अव्यवस्था का शिकार कुछ वर्ष पहले वाला काशी स्टेशन है। ट्रेन के