सुमन खंडेलवाल - भाग 3

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भाग -3 कुछ ही साल बीते होंगे कि मुझे उसके फ़ादर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर दिखाई दिए। मैं अपने नए-नए शुरू किए गए बिज़नेस के सिलसिले में दिल्ली गया हुआ था। जिस बोगी से प्लैटफ़ॉर्म पर मैं उतरा, उसी बोगी के पिछले दरवाज़े से वह भी उतरे। उनके साथ मध्यम क़द काठी की साँवली सी एक महिला भी थी। उन पर निगाहें पड़ते ही मैंने उन्हें पहचान लिया।  मेरी आँखों के सामने एकदम से सुमन खंडेलवाल का चेहरा घूम गया। मैं लपक कर उनके पास पहुँचा। हाथ जोड़कर उन्हें नमस्ते की। वह एकदम हक्का-बक्का से हो गए। नमस्ते का