भाग –४७ "क्या काम है आप लोगों को मुझसे" मैने कहा तो मेरी आवाज पर सभी ने पलट कर देखा। "कीर्ति , तुम कैसी हो ?" कहते हुए मिहिर की आंख नम हो चली थी। "मैं ठीक हूं " मैने कठोरता से कहा। मेरी आंखे नम नही थी। ना ही मुझ में कोई इमोशंस बचे थे। वक्त ने या परिस्थितियों ने ना जाने किन हालातों ने मुझे ऐसा बना दिया था। मैं पुराने किसी भी रिश्ते में जाना नही चाहती थी। इसलिए अब तक भाग रही थी। "कीर्ति तुम जानती थी ना हम लोग तुम्हे ढूंढ रहे है?" "ऐसा क्यों