उत्तरायण - 1

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१. स्त्रीत्वपूछता हूं मैं जग से आज ललकार कर क्या करते हो संदेह तुम उस अद्वितीय फनकार परहस्तक्षेप इस श्रृष्टि की रचना में मुझे बताओ तुम करते किस अधिकार परक्यों कहते स्त्री को पुरुष के तू बराबर चलहोता संभव ऐसा अगरतो क्यों करता स्त्री–पुरुष का भेद वो ईश्वरशर्म करो,क्यों घटाते मान स्त्रीत्व काउसको पुरुष के तुम बराबर करजो मां बनकर सारे जग को चलना सिखाएउसको तुम क्या चलना सिखाओगेजिसका कद स्वयं ऊंचा हो,जो स्वयं सशक्त होउसको क्या तुम ऊंचा उठाओगेक्या मानोगे तुम उनको खोकरजो अद्वितीय गुण स्त्री में विद्यमान हैआज भूल रही है अपना कर्तव्य पुरुषत्व में लिपटी,ईश्वर की वो