द्वारावती - 33

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33केशव मंदिर की दिशा में चलने लगा, गुल भी। मंदिर तथा तट के मध्य जलराशि न्यूनतम थी। दोनों ने चलते हुए उसे सरलता से पार कर लिया। गुल सीधे ही मंदिर के भीतर चली गई। भगवान के सन्मुख रखे चावल मुट्ठी में भरकर वह प्रांगण में चली आई। समुद्र में दूर कहीं पंखी उड़ रहे थे, गुल को उन पंखियों की प्रतीक्षा थी। गुल ने अपनी मुट्ठी खोल दी। सारे चावल बिखेर दिये। एक कोने में जाकर वह खड़ी हो गई। प्रतीक्षा करने लगी। ‘आज मुझे ईन पंखियों से कोई भीती नहीं है। मैं इन सभी से मित्रता करूंगी। वह