32 “मंदिर में मेरे साथ उन पंखियों ने अनुचित व्यवहार किया था, केशव। उनकी क्या मनसा थी?” “विशेष कुछ नहीं, केवल भोजन चाहते थे।” “किंतु मछलियाँ किसीका भोजन नहीं हो सकती। वह पंखी मांसाहार कर रहा था, मछली को मार रहा था। मैंने उस पंखी से उस मछली को मुक्त करवाया। मछली का जीवन बचाया। ठीक ही तो किया था मैंने। वह पंखी पापी था। पापी से मैंने किसी जीव की रक्षा की। यह तो करना ही था। वह पंखी को दंड मिलना चाहिए था।”“नहीं, उन पंखियों का भोजन मछली ही होता है। तुमने उसका भोजन छिन लिया तो क्रोध