सत्या के लिए - भाग 3

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भाग -3 उसके बड़े संदेहास्पद हाव-भाव को देख कर मैं बड़े असमंजस पड़ गई कि यह क्या हो रहा है? कई बार दरवाज़ा खटखटाने पर जब मैला-कुचैला सलवार, कुर्ता पहने, नंगे पैर एक फूहड़, काली, भद्दी मोटी-सी मुस्लिम औरत ने खोला तो उसे देखकर मैं डर गई। वह अजीब चोर नज़रों से मुझे देखती हुई हर्षित से बोली, ‘अंदर आ बाहर क्यों खड़ा है।’ “वह मोटर-साइकिल पर पीछे बैग को खोल रहा था। जब वह मेरा हाथ पकड़ कर अंदर चलने लगा तो मैं ठिठक गई। मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था। लेकिन मेरे ठिठकते ही वह मुझे क़रीब-क़रीब