भाग -1 प्रदीप श्रीवास्तव आज वह फिर नस्लवादी कॉमेंट की बर्छियों से घायल होकर घर लौटी है। वह रास्ते भर कार ड्राइव करती हुई सोचती रही कि आख़िर ऐसे कॅरियर पैसे का क्या फ़ायदा जो सम्मान सुख-चैन छीन ले। क्या मैं गायनेकोलॉजिस्ट इसीलिए बनी, इसीलिए अपना देश भारत छोड़कर यहाँ ब्रिटेन आयी कि यहाँ नस्लवादियों, जेहादियों की नस्ली भेद-भाव पूर्ण अपमानजनक बातें, व्यवहार सुनूँ, बर्दाश्त करूँ, इनके हमलों का शिकार बनूँ। देश में सुनती थी यह बातें तो विश्वास नहीं कर पाती थी। सोमेश्वर भी कहते थे, ‘छोटी-मोटी घटनाएँ हो जाती होंगीं, वह एक डेवलेप्ड कंट्री है, वेलकल्चर्ड लोग हैं।