साँसत में काँटे - भाग 1

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भाग -1 प्रदीप श्रीवास्तव उसकी आँखों में भर आए आँसू उसके गालों पर गिरने ही वाले थे। आँसुओं से भरी उसकी आँखों में भीड़ और उनके हाथों में लहराते तिरंगे के अक्स दिखाई दे रहे थे। ज़ीरो डिग्री टेम्प्रेचर वाली कड़ाके की ठंड के कारण उसने ढेरों गर्म कपड़ों से ख़ुद को पूरी तरह से ढका हुआ था।  आँखें और उसके आस-पास का कुछ ही हिस्सा खुला हुआ था। वह भीड़ से थोड़ा अलग हटकर खड़ी थी। भीड़ भारत-माता की जय के साथ-साथ उस नेता का भी ज़िंदाबाद कर रही थी, जिसको, जिसके पूर्वजों, पार्टी को वह अपने सुखी-समृद्ध परिवार,