भाग -4 वह ऐसे बोलती चली जा रही थी, जैसे बहुत दिन से भरी बैठी थी और उसे छेड़ दिया गया। निखत और खुदेजा ने कल्पना भी नहीं की थी कि वह इतना कुछ जानती ही नहीं बल्कि बोलेगी भी। दोनों अंदर ही अंदर खौलने लगी थीं। लेकिन ऊपर से बिल्कुल नॉर्मल दिखने का प्रयास करती हुई उसकी बातों को ऐसे समझती सुनती रहीं, जैसे उन्हें बहुत अच्छी लग रही हैं। लेकिन अंततः माहौल कुछ तनावपूर्ण सा होने लगा। डोर कहीं हाथ से छूट न जाए इसलिए निखत ने बड़ी चालाकी से कहा, “सुनो बड़ी भारी-भारी बातें हो गई हैं,