छह दरवाज़े की घण्टी की आवाज़ सुनकर जब सुष्मिताजी ने दरवाज़ा खोला तो सामने का नजारा देखकर अपनी आँखों पर एकाएक विश्वास नहीं हुआ उन्हें। सामने वरुण सक्सेना और उनके साथ में रत्ना को खड़े पाया उन्होंने। हाथ में सूटकेस लेकर खड़े वरुण सक्सेना भी समझ नहीं पाये कि क्या बोलें। वे समझ रहे थे सुष्मिताजी की खुशी। यह क्या? यह क्या देख रही थीं सुष्मिताजी? रत्ना और वरुण उनके घर आये हैं। अकस्मात्, बिना किसी पूर्व सूचना या कार्यक्रम के। कैसा सुखद आश्चर्य! वरुण की आस-उम्मीद तो खैर जब तब बनी ही रहती थी उन्हें, और उनका आना अप्रत्याशित