जुबान ,जिह्वा और आवाज़ जिसके संयम संतुलन खोने से मानव स्वयं खतरे को आमंत्रित करता है और ईश्वरीय चेतना की सत्ता को नकारने लगता है।अतः जिह्वा जुबान का सदैवसंयमित संतुलित उपयोग ही नैतिकता नैतिक मूल्यों को स्थापित करता है जिह्वा जुबान का असंयमित असंतुलित प्रयोग घातक और जोखिमो को आमंत्रण देता है ।प्रस्तुत लघुकथा इसी ईश्वरीय सिद्धान्त पर आधारित आत्मिक ईश्वरीय तत्व का बोध कराती समाज को एक सार्थक संदेश देती है-- जमुनियां गांव में बहुत बढ़े जमींदार मार्तंड सिंह हुआ करते थे आठ दस कोस में उनसे बड़ा जमींदार कोई नही था उनके परिवार की सेवा में पूरे गांव