लागा चुनरी में दाग़--भाग(५८)

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धनुष जैसे ही प्रत्यन्चा के कमरे से सामान रखकर वापस आने लगा तो प्रत्यन्चा ने उससे कहा... "कहाँ जा रहे हैं,रुकिए ना थोड़ी देर," "मैं क्या करूँगा यहाँ रुककर,जब तुम्हें मेरी परवाह ही नहीं",धनुष ने ताना मारते हुए कहा... "ये आपने कैंसे सोच लिया",प्रत्यन्चा ने पूछा... "आज तुम दोपहर का खाना लेकर आउटहाउस नहीं आई तो इसका मतलब तो वही होता है",धनुष ने कहा... "आप कोई छोटे बच्चे हैं जो मैं रोज रोज आपको खाना खिलाने वहाँ आऊँ",प्रत्यन्चा बोली... "अच्छा! अब मैं जा रहा हूँ,ऐसा लगता है कि जैसे तुम्हारा मुझसे झगड़ा करने का मन है",धनुष बोला... "ऐसा कुछ नहीं