सन्यासी -- भाग - 2

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जयन्त अपनी साइकिल से जब काँलेज पहुँचा तो उसे बहुत भूख लगी थी,इसलिए कैन्टीन जाकर उसने कुछ खाने का सोचा,लेकिन कैन्टीन में कुछ भी उसके मतलब का कुछ भी नहीं था,इसलिए वो वहाँ से वापस चला आया और तभी उसका दोस्त वीरेन्द्र उसे दूर से दिखा और उसने उसे देखकर हाथ हिलाया, इसके बाद वीरेन्द्र उसके पास आकर बोला.... "भाई! तेरा मुँह क्यों लटका हुआ है"? "यार! मेरा तो वही रोज रोज का टन्टा है,बाबूजी से बहसबाजी फिर इसके बाद भूखे काँलेज चले आना, कैन्टीन गया था कुछ खाने के लिए लेकिन वहाँ मेरे मतलब का कुछ भी नहीं था,इसलिए