कभी कभी इन्सान अपने जीवन से विरक्त होकर इस सांसारिक जीवन से सन्यास लेकर सन्यासी बन जाता है, लेकिन क्या वो सच में इस संसार के चक्रव्यूह से निकल पाता है,शायद नहीं! क्योंकि सांसारिक जीवन को त्यागकर उस ईश्वर की शरण में जाना,इतना भी आसान नहीं होता जैसा कि हमें दिखाई देता है,क्योंकि हमें उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण में जाने के लिए आत्मिक परिपक्वता एवं अडिग विश्वास की जरूरत होती है और ये दोनों भाव हमारे भीतर यूँ ही प्रवेश नहीं करते,उसके लिए हमें कड़ी तपस्या और अपनी इन्द्रियों को वश में करना आना चाहिए..... क्या इस कहानी का