द्वारावती - 28

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28गुल की उस अवस्था में हस्तक्षेप करना केशव को अनुचित लगा। वह बस उसे निहारता रहा। वह समुद्र को निहारती रही। समय की रेत धीरे धीरे सरक रही थी। सूरज अब निकल चुका था। समुद्र से आता समीर अब मंद हो गया था, किंतु अभी भी शीतल था। उस शीतलता से भी गुल अनभिज्ञ थी। वह केवल समुद्र से जुड़ी थी। अन्य किसी बात, किसी वस्तु उसे प्रभावित नहीं कर रही थी। गुल तथा समुद्र के बीच जो एकरूपता थी, जो तादात्म्य था, सहसा वह खंडित हो गया। श्वेत पंखियों का एक विशाल वृंद उड़ता हुआ समुद्र की तरफ़ से