द्वारावती - 25

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25नए प्रभात की सुगंध की अनुभूति करते हुए केशव गुरुकुल से समुद्र की तरफ़ जा रहा था। सूर्योदय के साथ जो अनुभूति कल हुई थी उस रस का पान वह आज भी करना चाहता था। वह प्रसन्न था। सूर्योदय की अनेक आशाएँ, अपेक्षाएँ लिए वह कन्दरा के समीप आ गया। अंधकार अभी भी अपने अस्तित्व का संघर्ष कर रहा था। क्षण प्रति क्षण वह परास्त होता जा रहा था। किंतु अभी भी प्रकाश ने उस पर विजय प्राप्त नहीं की थी।वह अपने निश्चित स्थान पर, शिला पर आसन ग्रहण करने के लिए आगे बढ़ा, किंतु ठहर गया। उस शिला पर