श्रीरामदासजी बूंदी नगर के निवासी थे। जाति के बनिया थे। अतः वर्ण-धर्मानुसार व्यापार करते हुए भगवद्भक्ति की साधना करते थे। अपनी पीठ पर नमक-मिर्च-गुड़ आदि की गठरी लादकर गाँवों में फेरी लगाते थे। कुछ नगद पैसे और कुछ अनाज भी मिलता था। एक दिन फेरी में सामान बिक गया और बदले में अनाज ही विशेष मिला। उसकी गठरी सिर पर रखकर घर को चले। वजन अधिक था, अतः भार से पीड़ित थे, पर ढो रहे थे। एक किसान का रूप रखकर भगवान् आये और बोले— भगतजी! आपका दुःख मुझसे देखा नहीं जा रहा है। हमें भार वहन करने का भारी