श्रीखेमालरत्न राठौर जी के वंश में वैष्णव सुपुत्र उत्पन्न हुए। श्रीहरीदास भगवान् के एवं भगवद्भक्तों के भक्त थे। भक्ति एवं भक्तरूपी मन्दिर के कलश थे। भजन-भाव में आप सुदृढ़ निष्ठा वाले भक्त थे तथा आपका हृदय भागीरथी गंगा के समान पवित्र एवं निर्मल था। मन-वचन एवं कर्म से आप अनन्य भक्त थे। श्रीरामरयनजी की उपासना रीति का ही आपने भी अनुसरण किया। इन्हें भगवत्तुल्य अपने श्रीगुरुदेव का बल भगवबल के समान ही था। इन दोनों की सेवा आपने राजोपचारों से की। जैसे शरद् ऋतु के पूर्ण चन्द्रमा को देखकर समुद्र ऊँची लहरें लेकर बढ़ने लगता है, उसी प्रकार भगवद्भक्तों को