घड़ी की सुइयों के साथ भागता ये वक़्त कितना जल्दी - जल्दी ख़तम हो गया , हमें तो पता भी नहीं चला कब छुट्टियां ख़तम हो गई थी उन बगीचों में फूलों का खुशबू , तितलियों के साथ खेलना वो भी क्या बचपन था ?? थोड़ा उसके साथ लड़ना , एक दूसरे से रूठ जाना फिर एक - दूसरे को माना । मानो कल ही तो ये सब हो रहा था आंखों के सामने जैसा सब याद है मुझे । आस - पास के लोगों को कितना परेशान करते थे हम दोनों मिलकर , चुपके चुपके अपने - अपने घर