छोड़ दे ये नगरी. . . कहानी * शरोवन रोहन अपनी नौकरी से निपट कर अपने बंगले पर आया तो उस समय दूर क्षितिज में सूर्य की अंतिम लाली अपना दम तोड़े दे रही थी और ढलते हुए सूर्य की रश्मियों से पिघला हुआ सोना निकलकर सारे आकाश के वक्ष पर पसर रहा था. कार से उतरते ही रोहन बंगले के अंदर न जाकर बाहर लॉन में पड़ी हुई दो कुर्सियों में से एक पर बड़े ही आराम से बैठ गया. बैठते ही वह सारे दिन की अपनी नौकरी की थकान मिटाने की कोशिश करने लगा. वह दस-पांच मिनिटों तक