द्वारावती - 18

  • 1.4k
  • 645

18दूसरी प्रभात को गुल उस कन्दरा पर जाकर समय से पूर्व ही खडी हो गई। केशव की प्रतीक्षा करने लगी। उसके अब्बा मछलियाँ पकड़ने लगे। ओम् के नाद के साथ केशव आया। गुल वहीं प्रतीक्षा कर रही थी। नाद सुनते ही उसने आँखें बंध कर ली। उसके भीतर आनंद की तरंगें उठ रही थी। केशव शिला पर बैठ गया। सूर्य की तरफ़ मुख रखकर, आँखें बंध कर ओम् के जाप करने लगा। समय, हवा, समुद्र की तरंगें, कन्दरा, शिला, दिशाएँ सभी एक साथ एक ही बिंदु पर केंद्रित हो गए। गुल भी।ओम्, ओम्, ओम् , ओम्। “तुम यहाँ हो? क्या