लागा चुनरी में दाग़--भाग(२४)

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फिर खाना खाते हुए धनुष बोला.... "खाना तो बहुत अच्छा बना है,खासकर ये कढ़ी पकौड़ी,वैसे किसने बनाया खाना", "मैं ने ही बनाया है",प्रत्यन्चा बोली... "मैंने तुम्हारे साथ इतना बुरा बर्ताव किया और तुम तब भी मुझे खाना खिलाने आ गई",धनुष ने पूछा... "हाँ! दादाजी के कहने पर आना पड़ा,नहीं तो मैं तो आपके लिए कभी खाना ना लाती",प्रत्यन्चा बोली... "वैसे तुम्हारा घर कहाँ है?",धनुष ने खाना खाते हुए पूछा... "मेरा कोई घर नहीं है,मैं इस दुनिया में बिलकुल अकेली हूँ",प्रत्यन्चा बोली... "मतलब! अनाथ हो",धनुष बोला... "हाँ! ऐसा ही कुछ समझ लीजिए",प्रत्यन्चा बोली... "तब तो बड़ी मुश्किल जिन्दगी है तुम्हारी",धनुष बोला...