उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - भाग 29

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भाग 29 " चलो कोई बात नही। तुमने अपना सब कुछ स्वंय सम्हाला है। एक साहसी, संवेदनशील महिला का दृष्टान्त प्रस्तुत किया है तुमने सबके समक्ष। " मैंने अनिमा से कहा। कुछ देर में अनिमा चली गयी। लंच का समय समाप्त जो हो गया था। किन्तु मैं अनिमा को जाते हुए देखती रही। उसका परिश्रम, लगन और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण देखकर सोच रही थी कि अनिमा को न समझ पाने वाले व्यक्ति ने कितना अमूल्य साथी खो दिया है। इधर कई दिनों तक व्यस्त रही मैं। दीपावली पर्व समीप था। उसी की तैयारियों में लगी रही। इस बार