भाग 26 " मैंने एक एन0 जी0 ओ0 की सदस्यता ग्रहण कर ली है। शाम को कार्यालय व घर के कार्य के पश्चात् जो भी समय बचता है, निर्धन-अनाथ बच्चों को पढ़ाती हूँ। उनकी आर्थिक मदद करती हूँ। पुस्तकें, काॅपियाँ, कपड़े, इत्यादि जो भी बन पड़ता है, उनकी सहायता कर देती हूँ। मन को बड़ी शान्ति मिलती हैं। सच कहूँ तो उनकी मदद होती है या नही, ये तो मैं नही जानती किन्तु ऐसा कर के मुझे बड़ी खुशी मिलती है। ये सब मैं अपनी खुशी के लिए कर रही हूँ। " अनिमा की बातें मैं मनोयोग से सुन रही