उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - भाग 22

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भाग 22 आजकल प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त हो, नहा धोकर ताऊजी बाहर बारामदे में तख़्त पर बैठ जाते। वहीं चाय-नाश्ता इत्यादि करते हैं। वहीं बैठे-बैठे दोपहर का भोजन भी करते हैं। सड़क से आते-जाते लोगों को आवाज लगाकर पास बुलाकर हाल-चाल लेने के बहाने उनसे बातें करते हैं। पुराने दिनों की राजनीति की, सत्ता की, उनके उस जलवों की जो अब नही बची हैं, बातें करते हैं। यह सब करना उनका स्वभाव बन गया है। ऐसा इसलिए है कि अब वो अकेले पड़ने लगे हैं। अकेलापन उनको सालने लगा है। धीरे-धीरे सभी को पता चलने लगा कि ये हाल-चाल पूछने