उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - भाग 16

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भाग 16 आज सुबह से अभय से कोई बात नही हुई मेरी। उसे चाय देने से लेकर घर के सभी कार्य कर मैं घर से कार्यालय के लिए निकली हूँ। बस की खिडकी के पास बैठी मैं बाहर के दृश्य देेख रही हूँ। बस आगे बढती जा रही है, सब कुछ पीछे छूटता जा रहा है। बस की गति के साथ विचारों का प्रवाह भी तीव्र होता जा रहा है। मैं सोच रही हूँ, उम्र ढ़लने पर मर्द औरत के साथ क्यों इस प्रकार का व्यवहार करता है? क्यों वह उस समय उसके समक्ष विजेता बनकर खड़ा हो जाता है,