उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - भाग 13

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भाग 13 समय व्यतीत होता जा रहा था। आजकल मुझे माँ के घर की बहुत याद आ रही थी। जब से इन्द्रेश की अस्वस्थता के विषय में ज्ञात हुआ है तब से कुछ अधिक ही। अन्ततः मुझसे रहा नही गया और एक दिन का अवकाश लेकर मैं माँ के घर के लिए चल पड़ी। मुझे कुशीनगर से पडरौना जाते समय मार्ग में पड़ने वाले मनोरम दृश्य तथा वो मुख्य सड़क जो पडरौना छावनी की ओर जाती थी, जो चारों ओर हरियाली के साथ अपने भीतर असीम शान्ति समेटे हुए थी, मुझे सदा से आकर्षित करती थी। कदाचित् तथागत् की शान्ति