द्वारावती - 16

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16प्रतीक्षा के कुछ ही क्षण व्यतीत होने पर उत्सव विचारों से घिर गया। ‘मैं इस प्रकार रिक्त ही रहा तो मेरे लक्ष्य को में प्राप्त नहीं कर सकता। यदि पूर्ण रूप से रिक्त हो गया तो मैं निर्लेप हो जाऊँगा। मेरी जिज्ञासा समाप्त हो जाएगी। मेरे प्रश्न, मेरे संशय भी नहीं रहेंगे। यह स्थिति तो मोक्ष की है। क्या मुझे मोक्ष चाहिए?’‘नहीं। मोक्ष तेरा अंतिम लक्ष्य नहीं है। यदि मोक्ष ही अंतिम लक्ष्य होता तो तुम्हें यहाँ तक प्रवास की आवश्यकता ही नहीं थी। यह तो व्यर्थ उद्यम होगा। मोक्ष तो तुम्हें गंगा के सान्निध्य में, हिमालय की किसी भी