लागा चुनरी में दाग़-भाग(१८)

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प्रत्यन्चा अपने कमरे में आकर फूट फूटकर रोने लगी और ये सोचने लगी कि उसकी जान बचाने के लिए आखिरकार शौकत ने खुद को कुर्बान कर दिया,ऐसा तो उसका सगा भाई भी ना करता,उसने जो रिश्ता कायम किया था,उसे उसने अपनी जान देकर आखिरी तक निभाया,आज अगर मैं जिन्दा हूँ,सलामत हूँ तो ये उसी की देन है, लेकिन अब मुझे सारी पुरानी बातें भूलकर जिन्दगी में आगें बढ़ना होगा,अगर मैं अब भी अपने अतीत में अटकी रही तो सुकून से नहीं जी पाऊँगी, दिवान साहब ने मुझे बड़े विश्वास के साथ अपने घर में पनाह दी है, इसलिए मुझे भी