जब कालबाह्यी अपनी माता कालवाची से विलग हुई तो उससे बोली.... "ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे आपसे मेरा कोई पूर्व सम्बन्ध है,नहीं तो मुझे इतनी शान्ति एवं सन्तुष्टि का अनुभव नहीं होता", "कुछ सम्बन्ध ऐसे होते हैं मनोज्ञा! जो हृदय से जुड़े होते हैं,उन्हें ना तो समय तोड़ सकता है और ना ही विपरीत परिस्थितियाँ",कालवाची बोली... "कदाचित! आपका कथन सत्य है",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली.... इसके पश्चात् कालबाह्यी वहाँ से चली गई,कुछ समय तक सभी के मध्य वार्तालाप चलता रहा,इसके पश्चात् जब विराटज्योति वहाँ से चला गया तो तब कालवाची अचलराज और भैरवी से बोली.... "मेरी पुत्री से मेरी भेंट