बाँहों के घेरे “निलेश। मै जब तक तुम्हारे साथ रहती हूँ, स्वंय को एक स्त्री होने के भय और पाप से मुक्त समझती हूं।“ रात के नौ बज गये थे पार्क की बैंच पर बैठी हुई रंजना ने बैंच के सामने बिछी हरी घास पर बैठे हुए निलेश की और देखते हुये कहा जो उस समय आकाश की और एक टक देख रहा था, यूँ तो पार्क मै चारो और चाँदनी खिली हुई थी किन्तु छोटे छोटे बादलो के टुकडे इधर उधर बेपरवाह उड़ रहे थे, जब कभी बादलो का कोई टुकड़ा चन्द्रमा को ढक लेता है तो