तारा जब एक सप्ताह की छुट्टी लेकर बनारस पहुँची तब राघव स्टेशन से ही उसे साथ लेकर सबसे पहले रथयात्रा क्षेत्र में स्थित अपने नये दफ़्तर पहुँचा।दफ़्तर की सारी व्यवस्था देखकर तारा उत्साहित होकर राघव की पीठ पर धौल जमाते हुए बोली, "वाह मेरे शेर! क्या खूब सजाया है तूने हमारे सपने के आशियाने को।मेरा मन तो अभी से यहाँ काम करने के लिए मचलने लगा है।""फिर तुझे रोका किसने है बता?" राघव तारा को उसके केबिन की तरफ ले जाते हुए बोला तो तारा की नज़र केबिन के दरवाजे पर लगे हुए नेमप्लेट पर ठहर गयी जहाँ लिखा था,