भाग 3“विक्रम तैयार हो गए आप कि नहीं?” कविता ने कमर का दरवाज़ा खटखटाते हुए पूछा। तभी विक्रम राठोर ने दरवाज़ा खोल कविता को अंदर ले लिया और उसे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, “आपको हमारा दरवाज़ा खटखटाने की क्या ज़रूरत है। मैडम आप बेझिझक अंदर आ सकती हैं।” कविता ने एक नज़र विक्रम को देखा। उसके कमीज़ के अधखुले बटन के अंदर से उसका सुगठित शरीर दिख रहा था। कविता ने अपना हाथ उसकी कमीज़ के अंदर डालते हुए कहा, “ऐसी हालत में हमें अंदर ना बुलाया करें विक्रम साहब! हम कंट्रोल नहीं कर पाते अपने आपको।” “तो