वनिता ने झट से अपनी कार की खिड़की का शीशा चढ़ा लिया। सिग्नल क्लियर हुआ और कार आगे बढ़ गई। मगर वनिता पीछे रह गई। न चाहते हुए भी उस शख्स का चेहरा उसकी आँखों के सामने नाचने लगा, जो अभी कुछ देर पहले उसे नज़र आया था। ये वही चेहरा था, जिसकी एक झलक के लिए वो कभी बेकरार रहा करती थी।कॉलेज का पहला दिन वनिता की आँखों के सामने फ़िल्मी रील की भांति घूमने लगा। सतरह बरस की वनिता हाथों में किताबें थामे दुपट्टा संभालते हुए लाइब्रेरी से बाहर निकल रही थी। यकायक लाइब्रेरी में दाखिल हो रहे