जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी॥ करहिं अनीति जाई नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥ तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥ असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु। जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु॥अपनी इस प्रतिज्ञा के अनुसार अकारण करुण, करुणावरुणालय भक्तवत्सल भगवान् श्रीरामचन्द्र जी चार रूप धारण करके श्रीअयोध्यापति चक्रवर्ती महाराजाधिराज श्रीदशरथजी के पुत्ररूप में चैत्र शुक्ल ९ रामनवमी को अवतरित हुए। महारानी श्रीकौशल्याजी की कुक्षि से श्रीराम, श्रीकैकेयी जी की कुक्षि से श्रीभरत, श्रीसुमित्रा जी की कुक्षि से श्रीलक्ष्मण और शत्रुघ्न प्रकट हुए। यथासमय जातकर्म, नामकरण,