यह घटना उस समय की है जब मैं एक विधार्थी था और आई आई टी कानपूर से इन्जीनियरिंग कर रहा था रात के करीब 1:00 होंगे चारो और अंधेरा छाया हुआ था सड़क पर लगा लाइट का खम्बा कभी जल उठता कभी मदं पड जाता सड़क सुनसान थी कभी कभी कोई कार सन्नाटे को चीरती हुई आती फिर सब सुनसान हो जाता सड़क के पास ही एक अपार्टमेंट मे मैं और मेरा सहपाठी गणेश सो रहे थे अचानक मेरी निंद टूटी और मुझे जोरो कि प्यास लगने लगी मै पानी पीने चला गया तभी मैंने खिड़की से कोई परछाई देखी