सुरासुर - 1

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रात्रि के अंधकार में सुनसानी सड़क पर कंधे लटकाए हाथ झुलाए कर्ण आहिस्ता-आहिस्ता चल रहा है। 'राजू नाई' के दूकान को पार कर वो अपने कदमों को विराम देता है तथा सिर ऊपर की ओर उठाए अर्धखुली पलकों से चंद्रमा को निहारने लगता है- क्यों आखिर मैं ही क्यों मुझे ही क्यों...