देखो फूल रूठ गए

1.जिस राह पर अब हम हैं,घर तुम्हारा पीछे छूट गया,शीशे का महल था,शब्द कंकरों से,छन से टूट गया...2.बाज़ार का हुस्न भी कुछ कम नहीं,रंगो और साजो सामान से भरा है,अपनी ही कहानी कहता है,और चमक भरता है आंखों में,ये बाज़ार,बहुत से अरमानों से हरा है...3.आंखें भी कमाल करती हैं,मिल जाए किसी से,तो बवाल करती हैं...4.मैं मरने से पहले,जी लेना चाहती हूं,अनकही बातें कुछ,कह लेना चाहती हूं,शिकवा, शिकायत,तो होती ही रही,अब सब उलझने,सुलझा लेना चाहती हूं...5.खूबसूरत ग़ज़ल है वो,जिसे गुनगुनाना, एक हुनर है,सुकून का सागर है,वो ग़ज़ल है, तो सहर है,क़िताब में ना लिखी गई,ना अपनाई गई किसी महफ़िल में,ना जाने